हिंसक क्यों हो रहे हैं बच्चे?
Delhi,24 march (Dr. M H Ghazali) बच्चों की मुस्कान माता -पिता की खुशी का कारण बनती है उनकी छोटी -छोटी शरारतें सब को भली लगती हैं I इन्ही शरारतों से शिक्षा विशेषज्ञ बच्चे की रचनात्मक क्षमता का अनुमान लगाते हैं। अक्सर देखा गया है कि बच्चे स्कूल या कक्षा के सहपाठियों को अपने रिश्तेदारों से अधिक महत्व देते हैं। इस की वजह शिक्षा के दौरान बनने वाली दोस्ती होती है, कई बार यह दोस्ती हमेशा बनी रहती है I समय के साथ, स्कूल के साथी बिछड़ जाते हैं लेकिन वे यादों में सदा सुरक्षित रहते हैं। इसी तरह, कई शिक्षकों को भी बच्चे कभी भुला पाते, उनकी नकल करते हैं, और मन ही मन उनको अपना आदर्श मानने लगते हैं। क्योंकि उनसे अपना पन मिला होता है, या फिर अध्ययन के दौरान आई छोटी- छोटी कठिनाइयां उनके मार्गदर्शन से आसान हुई होती हैं।भारत की सभ्यता में जो रिश्ते महत्वपूर्ण है, गुरु शिष्य का रिश्ता उनमें से एक है। कबीर ने गुरु का सम्मान गोविन्द (भगवान) से पहले करने की बात कही है। उनका मानना है कि गुरु के बिना, भगवान को पहचानना, उसकी इच्छा को समझना मुश्किल है I इसी प्रकार एकलव्य ने अपने गुरु के कहने पर अपना अंगूठा काट कर उनके चरणों में रख दिया था। कोई भी कौशल बिना शिक्षक के नहीं सीखा जा सकता I हमारे देश में गुरु शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है I व्यावहारिक रूप से भी यह रिश्ता स्वाभाविक है क्योंकि यह माना जाता है कि बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं I जो बनाना चाहें, जिस प्रकार ढालना चाहें उसकी शुरुआत बचपन से ही होती है। प्रत्येक बच्चा अलग स्वभाव और क्षमता के साथ पैदा होता है। शिक्षक इसे ध्यान में रखकर बच्चों को प्रशिक्षित और शिक्षित करते हैं I आधुनिक समय में शिक्षा ने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया है। जो भी इस व्यवसाय को अपनाना चाहेगा उसे शिक्षक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। शिक्षकों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में बच्चों का मनोविज्ञान, उनके प्रकार, नैतिकता, गुरु शिष्य के सम्बन्ध और अध्यापन प्रणाली आदि शामिल है। इतना ही नहीं इसका व्यावहारिक अभ्यास भी कराया जाता है ताकि व्यवसायीक जीवन में इसका ध्यान रहे और उनका प्रदर्शन अच्छा हो।बच्चों के बीच कहा सुनी, लड़ाई- झगड़ा, नोक झोंक का होना स्वभाविक है। स्कूलों में छात्रों के बीच पहले भी झगडे होते थे I जिन्हें शिक्षक रफा दफा कर आपस में मेल- मिलाप करा दिया करते थे I कुछ बातें किसी शिक्षक की पहले भी विद्यार्थियों को खराब लगती थीं, लेकिन गुरु को कुछ भी कहने का किसी में साहस नहीं होता था। सवाल यह है कि अब ऐसा क्या हो गया की विद्यार्थी साथी छात्र या शिक्षक की पिटाई और जानलेवा हमला करने से भी नहीं डरते। उनके अंदर इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई कि वे अपनी सीमाएं पार कर रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक है कि कहीं छात्र अपने शिक्षकों का अपमान कर रहे हैं, तो कहीं छात्रों के द्वारा शिक्षकों के साथ अमानवीय व्यवहार और क़ातलाना हमला करने की घटनाएं सामने आ रही हैं I इस समय देश में सैकड़ों शिक्षक इस तरह की घटनाओं का दंश झेल रहे हैं। यमुना नगर हरियाणा की नवीनतम घटना ने सभी को हिला कर रख दिया था I बारहवीं के एक छात्र ने अपने प्रिंसिपल के कमरे में घुस कर पिस्तौल से गोलियां चला कर प्रिंसिपल को मौत के घाट उतार दिया I हत्या की इस घटना ने देश के हर नागरिक को बेचैन कर दिया। यह हिंसक छात्र स्कूल में देर से आता था। प्रिंसिपल ने उसे दस दिनों के लिए स्कूल से बाहर कर दिया था, जिसके कारण इस छात्र ने इतना बड़ा क़दम उठा लिया I पिछले साल 2017 में,गुरुग्राम के रयान इंटरनेशनल स्कूल में प्रद्युमन की हत्या की घटना को उसी स्कूल के एक अन्य छात्र ने अंजाम दी थी। लखनऊ में भी एक छात्रा ने एक सात साल के बच्चे पर चाकू से ताबड़ तोड़ हमला कर के उसे मार दिया था। लखनऊ के ही ब्राइट लैंड स्कूल में एक लड़के को लहू लुहान कर दिया गया था जिस की समय पर चिकित्सा सहायता मिलने के कारण जान बच गई। दिल्ली के नागलोई में सरकारी विद्यालय के दो छात्रों ने शिक्षक पर चाकू से हमला कर के हत्या कर दी थी। शिक्षक का अपराध इतना था कि उसने बच्चों को परीक्षा में बैठने नहीं दिया था। दिल्ली के ही करावल नगर के जीवन ज्योति स्कूल में नवीं के छात्र को उसी स्कूल के छात्रों ने स्कूल के शौचालय बंद कर इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। इसी तरह, छात्रों के द्वारा अपने ही स्कूल के छात्र को पीटे जाने का सेंट्रल स्कूल का वीडियो भी वायरल हो चूका है।शिक्षकों का गरिमा विरुद्ध आचरण भी चिंता की बात है I दिल्ली के एक नामी प्राइवेट स्कूल की नौवीं की छात्रा ने पिछले दिनों जिन हालात में खुदकुशी की ओर गई, उसके ब्यौरे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। 15 साल की वह लड़की अपने एक शिक्षक द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत कर रही थी। उसका कहना था कि संबंधित टीचर उसे फेल कर देंगे। बावजूद इसके, उसकी शिकायतों को न उसके परिवार ने, न ही स्कूल ने इतनी गंभीरता से लिया कि उसे इस जाल से निकल पाने का भरोसा मिलता। रिजल्ट निकलने के बाद अपना नाम फेल स्टूडेंट्स की लिस्ट में पाकर उसने खुदकुशी कर ली। लगभग इसी तरह का मसला जेएनयू में उभरा है, जहां एक प्रफेसर द्वारा अपनी रिसर्च स्कॉलर्स पर यौन संबंधों के लिए दबाव बनाना, राजी न होने पर रिसर्च में रोड़े अटकाना और बात सामने आ जाने के बाद इस पर राजनीतिक दांव-पेंच शुरू होने से छात्रों के मन में दुविधा पैदा होना स्वाभाविक है कि गुरु-गोविंद सामने हों तो वह किसके पांव पड़े, यह हालात भारत को सभ्य समाजों की सूची से बाहर करने के लिए काफी हैं। ऐसी दुखद घटनाओं ने हर संवेदनशील व्यक्ति को विचलित किया है। ज्ञान के मंदिरों में पनप रहा हिंसक माहौल भविष्य के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। कुछ लोगों का सोचना है कि आवारा एवं आपराधिक मानसिकता वाले छात्रों को स्कूलों से निकाल देना चाहिए, हिंसा पर उतारू छात्रों को दंडित किया जाना चाहिए, सरकार को ऐसी घटनाओं पर ध्यान देना चाहिए, छात्रों की हरकतों को अनदेखा करने से उनका होंसला बढ़ेगा। यदि इन्हें बिना सज़ा के छोड़ दिया गया, तो ऐसी घटनाओं में वृद्धि होगी आदि। ये सारी बातें ठीक हो सकती हैं, लेकिन मूलभूत सवाल यह है कि आखिर छात्र हिंसक क्यों हो रहे हैं इसका जवाब तलाश किया जाना चाहिए। पंद्रह बीस साल पहले के स्कूलों को याद करें, आपके ध्यान में आ जाएगा कि स्कूलों में शारीरिक प्रशिक्षण (पीटी) के लिए एक घंटा होता था। जिस में बच्चों से विभिन्न प्रकार के शारीरिक अभ्यास कराये जाते थे I शिक्षक बच्चों से दुर्व्यहवार या गरिमा विरुद्ध आचरण नहीं करते थे। यह माना जाता था कि कोई ऐसी बात न की जाये जिस का बच्चों के कोमल मन पर बुरा प्रभाव पड़े, उनको अपमानित करने वाली या बुरी लगने वाली हो। फिर स्कूल के बाहर बच्चों के अपने खेल थे। इन में बॉली- बाल, फुटबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी, रस्सी कूदना, लॉन्ग जम्प, शार्ट जम्प, छुपम -छुपाई, घोडा कूदाई, सांप- सीढ़ी, लुडू, केरम बोर्ड , गुल्ली डंडा, पहिया चलाना आदि बच्चों के पसंददीदा खेल थे। इन खेलों से एक ओर बच्चे अपने शरीर को नियंत्रित करना सीख जाते थे दूसरी ओर उनका मन भटकने से बच जाता था। तीसरे अधिकांश खेल शिक्षकों की देखरेख में खेले जाते थे, जिससे शिक्षकों का सम्मान बना रहता था। समय के साथ बच्चों के खेल बदल गए। अब बच्चों का अधकांश समय मोबाइल खा जाता है इस का एक कारण यह भी है कि बच्चों के खेलने के लिए जगह उपलब्ध नहीं है। यदि मोहल्ले या कॉलोनी के आस- पास कोई मैदान, पार्क है भी तो वहां बच्चों को खेलने नहीं दिया जाता। मोबाइल जो गेम्स मौजूद हैं उन में मार धाड़ वाले या हॉरर गेम्स बच्चों को अधिक पसंद आते हैं। ब्लू व्हेल जैसे कई गेम्स सरकर बंद करने पड़े। मोबाईल गेम्स का एक नुकसान यह भी है कि बच्चे खेल के किसी काल्पनिक चरित्र से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उस जैसा बनने कि कोशिश करने लगते हैं। शारीरिक मेहनत वाले खेल न खेलने से उनका पसीना नहीं बह पाता इसका उनके शारीरिक व मानसिक विकास पर असर पड़ता है और उनकी शक्ति गुस्से में बदल जाती है। फिर नया खून गर्म होता है, वातावरण में मौजूद प्रदूषण के कारण मानव पहले से ही तनाव में है। छोटी सी बात भी बुरी लग जाती है। इस पर तुर्राह कि शिक्षक बच्चों से अपनी गरिमा के विरुद्ध अबे- तबे से बात करें, कई सरकारी स्कूलों में तो अध्यापकों को बच्चों को गाली तक देते देखा गया है। ऐसे में बच्चे कैसे अपने गुरुओं का सम्मान करें। फिर अजीब बात यह है कि अध्यापक पढ़ाने पर कम ट्यूशन से पैसे बनाने पर अधिक ध्यान देते हैं।बच्चों पर परीक्षा में अच्छे नंबर लाने का दबाव भी बराबर रहता है। यह दबाव केवल स्कूल का नहीं होता बल्कि माता-पिता का भी होता है। माता-पिता या अध्यापक इस बात पर ध्यान नहीं देते कि यदि कोई बच्चा विज्ञान या गणित में अच्छे नंबर नहीं लाया तो हो सकता है उसकी रुचि किसी और विषय में हो, यह भी हो सकता है कि बच्चे को साहित्यकार, पत्रकार या खिलाड़ी बनना हो, वह फोटोग्राफी में अपना भविष्य देख रहा हो या फिर कलाकार में। इसलिए, प्रत्येक बच्चे से 90% नंबर लाने की कामना नहीं करनी चाहिए। स्कूलों में हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर तो बात हो रही है, लेकिन शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने पर नहीं। शिक्षा प्रणाली में सुधर के नाम पर किसी विशेष विचार धारा के प्रचार पर जोर दिया जाता है। इस पर नहीं कि शिक्षा के द्वारा हम अपने बच्चों को किया दे रहे हैं? इस से क्या प्राप्त करना चाहते हैं? स्कूल में होने वाली घटनाएं निश्चित रूप से दुखद हैं, इन को रोकने के लिए दंड देने के बजाय, छात्रों ओर अध्यापकों के सुधार पर जोर देना होगा। यह सिद्ध हो चूका है कि दंड किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। इसके साथ ही, देश की स्थिति भी बच्चों के लिए सहायक बनानी होगी। समाज में अपराधियों, दबंगों और पूंजीपतियों को पद और सम्मान दिया जाएगा तो बच्चे वैसे ही बनने का प्रयास करेंगे।
-----डॉ मुजफ्फर हुसैन गज़ाली